
कास्ट : तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी , राहुल बोस , परमब्रता चट्टोपाध्याय , पाओली डैम , रूचि महाजन , वरुण, पारस बुद्धदेव
डायरेक्टर : अन्विता दत्त
केटेगरी – सोशल ड्रामा
कहा देख सकते है – NETFLIX
निर्माता और वितरको के अनुसार बुलबुल एक सामाजिक ड्रामा है परन्तु मेरे अनुसार, यह एक यथार्थवादी सेटिंग गढ़ी मनोवैज्ञानिक फिल्म है।
फिल्म का प्लस पॉइंट है उसकी कहानी जो की दिखाती है की प्राचीन समय से ही कैसे औरतो को पैसे के दम पर बड़े बड़े साहूकार लोग उनका शोषण करते थे | हालांकि कहानी का अंत थोड़ा अस्पष्ट है, परन्तु फिल्म कंटेंट एवं विसुअलिटी के दृश्टिकोण से बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है ।
कहानी –
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसकी कहानी है। कहानी की ताकत उसका चरित्र चित्रण है क्योंकि फिल्म में “बंगाल के जमींदार”, इंदरानी ठाकुर (राहुल बोस) को एक अमीर आदमी जोकि एक उम्रदराज होने के बाबजूद एक छोटी सी बच्ची को धोखे से अपनी बीवी बनाता है | राहुल बोस इस मूवी में दोहरा किरेदार निभा रहे है | एक और “बंगाल के जमींदार”, इंदरानी ठाकुर तो दूसरा किरेदार एक मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति जोकि उसका छोटा भाई भी है |
यह एक महिला की कहानी है जिसका विवाह बचपन में एक हमउम्र लड़के से कर दिया जाता है लेकिन यह विवाह एक छल होता है | इंदरानी ठाकुर (राहुल बोस) जोकि बंगाल के बहुत बड़े जमींदार है, पैसे के बल पर ये छल करते है और “बुलबुल”, रूची महाजन का विवाह अपने छोटे भाई “सत्या”, सत्यजीत ठाकुर (वरूण पारस बुद्धदेव) से करा देता है |
बुलबुल जैसे-जैसे बड़ी होती है वो सत्या को पसंद करने लगती है | बच्चपन में सत्या उसको डराने के लिए उसे एक भूत की कहानी सुनाता है और वो उसे बहुत मन से सुनती है | फिल्म में “चुड़ैले” जिसके पैर उलटे है और वो सबको मारती है | असल में वही बुलबुल है जो अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बदला लेती है और उन लोगो को भी मारती है जो औरतो पर जुर्म करते है |
सत्या (वरूण पारस बुद्धदेव) को बड़ी बहु “बुलबुल” से बहुत लगाव होता है | यह सब इंदरानी ठाकुर (राहुल बोस) को पसंद नहीं होता और वो अपने भाई सात्य को पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज देता है | बुलबुल को बहुत बुरा लगता है वो उसे रोकना चाहती है पर सत्या नहीं रुकता और इंग्लैंड चला जाता है | उसके इंग्लैंड जाने के बाद इंदरानी ठाकुर (राहुल बोस) उस पर बहुत अत्याचार करता है और तो और उसका पागल भाई भी उसका फायदा उठाता है | राहुल बोस भी अपना बंगला छोड़कर कोलकता चला जाता है |
5 साल बाद सत्या लंदन से वकालत करके लोटता है और बुलबुल “अपनी बड़ी भाभी” को देखकर खुश होता है | बुलबुल अपने चेहरे पर एक आकर्षित मुस्कान लिए उसका स्वागत करती है | एक डॉक्टर पर सत्या को शक होता है | बुलबुल बोलती है की तुम सब एक जैसे हो जोकि दर्शाता है की प्राचीन काल से ही पूंजीपतियों ने औरतो और समाज पर जुर्म करते आरहे है |
फिल्म की कहानी बहुत ही मार्मिक है इसमें औरत की पीड़ा और उसकी आवाज को कैसे पैसे के दम पर दबाया जाता है को दर्शाया गया है |
खासियत –
फिल्म की खासियत है उसकी कहानी जो की आपको हर वक़्त आपको एक नए सस्पेंस की तरफ ले जाएगी |
गीत – संगीत :
फिल्म के गाने और बैकग्राउंड म्यूजिक भी सहज है। यह दर्शकों को कहानी को गहराई से महसूस करने में मदद करता है।
अभिनय –
रूची महाजन “बुलबुल” ही एक मात्र करैक्टर है जिनके अभिनय को सराहा जा सकता है | फिल्म के शेष पात्र का एक सीमित दायरा है जो की ज्यादा आकर्षित नहीं करते है |
खामिया –
फिल्म का अंत स्पष्ट नहीं है; दर्शकों को अपनी तरह से इसकी व्याख्या निकालनी पड़ेगी। जिसकी वजह से कई दर्शकों को संदेह भी हो सकता है की क्या आगे कोई सीक्वल है क्या ?
अंत में, फिल्म का शीर्षक फिल्म के अनुसार उचित साबित नहीं होता । बुलबुल एक ऐसे पक्षी का नाम है जो अपनी सुरीली आवाज के लिए जाना जाता है। पर शीर्षक किस सुरीलेपन को बताना चाहता है, ये दर्शक ही बता सकते है ?
निष्कर्ष
अगर मैं अंत की बात न करू तो बुलबुल एक मार्मिक और गहरी फिल्म है है। फिल्म में बुद्धिजीवियों और आम लोगों को समान रूप से आकर्षित करने की क्षमता है। बुद्धिजीवियों को इसे सरल जीवन की कठिन परिस्थितियों का विश्लेषण करने के लिए देखना चाहिए। आम लोगों को इसे अपने जीवन को बेहतर समझने के लिए देखना चाहिए।
हालांकि, फिल्म सेलेक्टिव ऑडियंस क लिए ही बनाई गयी है जो जीवन के पहलुओं को देखना और समझना पसंद करते हैं ये उन लोगो को बिलकुल अपील नहीं करेगी जो सिर्फ मनोरंजन की तलाश में थियेटर जाते हैं। फिल्म एक दिल की भावनाओ का एहसास है जो बुलबुल न होकर बाज की तरह आपको सोचने पर मजबूर कर सकती है।
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